indian cinema heritage foundation

Dhanwan (1946)

  • Release Date1946
  • FormatB-W
  • LanguageHindi
Share
0 views

भारत वर्ष के एक छोटे से ग्राम में तीन व्यक्तियों का एक छोटा सा परिवार रहता था। उस परिवार का प्रमुख था इन्दूलाल। उसने विसात खाने तथा परचूरन की एक छोटी सी दूकान खोल रखी थी; और वह अपनी ईमानदारी और सज्जनता के कारण गांव में देवता की तरह पुजता था। सीमित आय के होते हुये भी इन्दूलाल का परिवार धन-धान्य से भरपूर था। उसकी पत्नी राधा मानो साक्षात देवी की प्रतिमा थी; और वे दोनो, पति पत्नी, अपने 10 वर्षीय प्रिय पुत्र प्रीतम के साथ सन्तोष पूर्वक सुख एवं शान्ति का जीवन व्यतीत कर रहे थे।

किन्तु वास्तविक सुख संसार में है कहाँ, यह कहना कठिन है; फिर भी मनुष्य में तृष्णा की जितनी ही कमी होगी उतना ही वह अधिक सुखी होगा! इन्दूलाल में भी धन की तृष्णा की कमी थी और यही कारण था कि वह अपनी उस सीमित आय से ही सन्तुष्ट था। लेकिन विधि का विधन कुछ और था, और घटना-चक्र कुछ ऐसा घूमा कि इन्दूलाल के दिल में एकाएक असन्तोष की ज्वाला भड़क उठी।

इस असंतोष की ज्वाला का मूल था, इन्दूलाल के ही गांव का, नाई मोहनलाल। एक वर्ष पहले यही मोहनलाल इन्दूलाल से 15 रु. कर्ज लेकर जीविका की खोज में बम्बई गया था और वहां जाकर उसने एक हेअर कटिंग सैलून की स्थापना की, ओर सालभर में ही धनवान होकर अच्छा खासा सूटेड बूटेज साहब हो अपने गाँव लौटा।

"50 रुपये रोज़ कमाता हूं" यही छोटा सा वाक्य तो मोहनलाल ने कहा था; किन्तु इसी छोटे से वाक्य ने इन्दूलाल के सुख-शांति एवं सन्तोष में आग लगा दी! और उसके हृदय में भी धनवान बनने की स्पर्धा हुई। वह अपनी पत्नी के मना करने पर भी अपने पुत्र प्रीतम को सोता हुआ छोड़ कर मोहनलाल नाई के साथ धन कमाने के हेतु बम्बई को चल पड़ा।

"इन्दूलाल रस्ते में टेªन-दुर्घटना का शिकार हो अभागी राधा को सदा के लिये विधवा बना गया!" यह समाचार टेªन-दुर्घटना में घायल होकर एक पैर कट जाने के बाद भी बच कर लौटे हुये लंगड़े नाई मोहनलाल ने आकर गांव वालो को सुनाया।

राधा का सुहाग-सिन्दूर पोंछ डाला गया, उसकी चूड़ियाँ फोड़ डाली गई! प्यारे पिता के वियोग में पुत्र प्रीतम रोते-रोते अपनी आँखे खो बैठा - अब वह अन्धा था।

(From the official press booklet)

Cast

Crew

Films by the same director